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हँस रहा है उधर / केदारनाथ अग्रवाल
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हँस रहा है उधर
धूप में खड़ा पूरा पहाड़
खोल कर मोटे बड़े होंठ ।
और चट्टानी जबड़े ।
रो रहा है इधर
शोक में पड़ा जन-समुदाय
काट कर कामकाजी हाथ
तोड़ कर छाती तगड़ी ।
रचनाकाल: १०-०९-१९६२