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मुरधर रा मोती / कानदान कल्पित

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(परमवीर चक्र मेजर शैतानसिंह खातर के लिए)

फ़र्ज़ चुकायो थे समाज रो , मुरधर रा मोती ,मारग लियो थे रीति रिवाज़ रो ।

बोली माता हरखाती , बेटो म्हारो जद जाणी, लाखां लाशा रे ऊपर सोवेला जद हिन्दवानी। बोटी बोटी कट जावै ,उतरे नहि कुल रो पाणी। अम्मर पीढयां सोढानी पिता री अमर कहानी । ध्यान कर लीजे इण बात रो , मुरधर रा मोती दूध लाजे ना पियो मात रो।

सूते पर वार न कीजो ,धोखे सूँ मार न लीजो । साम्ही छाती भिड़ लीजो,गोला री परवा नाहीं। बोली चाम्पावत राणी, पीढयां अम्मर धर कीजो। फ़र्ज़ चुकायो भारत मात रो , मुरधर रा मोती , सूरज सोने रो उग्यो सांतरो ।

राणी री बात सुणी जद , रगत उतरयो नैना में । लोही री नई तरंगा ,लाली छाई अंग अंग में । माता ने याद करी जद ,नाम अम्मर मरणा में। आशीसा देवे जननी , सीस धरियो चरणा में। ऊग्यो अगवानी जुध्ध बरात रो , मुरधर रा मोती , आछो लायो रे रंग जात रो।

धम धम उतरी महलां सूँ ,राणी निछरावल करती । बालू धोरां री धरती, मुळकी उमंगा भरती । आभो झुकियो गढ़ कांगरा,डैना ढींकी रण झरती। पोयां पग धरता बारै , पगल्याँ बिलूम्बी धरती। मान बधाज्यो बिन रात रो , मुरधर रा मोती, देसां हित मरियां जस जात रो ।

चुशूल पर चाय करण री, चीनी जद बात करेला । मर्दां ने मरणों एकर झूठो इतिहास पड़ेला। प्राणा रो मोल घटे जद ,भारत रो सीस झुकेला। हूवेला बात मरण री, बंस रो अंस मरेला। हेलो सुणज्यो थे गिरिराज रो, मुरधर रा मोती, देसां हित मरियां जस जात रो ।

तोपें टेंके जुधवाली,धधक उठी धूवाली। गोळी पर बरसे गोळी,लोही सूँ खेले होली। कांठल आयां ज्यूं काली ,आभे छाई अंधियाली । बोल्यो बरणाटो गोलो , रुकगी सूरज उगियाली । फीको पडियो रे रंग प्रभात रो, मुरधर रा मोती, देसां हित मरियां जस जात रो ।

जमियो रहियो सीमा पर छाती पर गोला सहकर , चीनीडा काँपे थर थर ,मरगा चीन्चाडा कर कर । सूतो हिन्दवानी सूरज , लाखां लाशा रे ऊपर । माता की लाज बचाकर , सीमा पर सीस चढ़ाकर ।

मुकुट राख्यो थे भारत मात रो, मुरधर रा मोती ,फ़र्ज़ चुकायो थे समाज रो। मुरधर रा मोती, देसां हित मरियां जस जात रो । </poem>