भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आसथा !/ कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 16 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिवलो,
न चढ़ते सुरज नै देखै‘र
न ढ़ळतै नै,
बीज,
न उगतै रूखं नै देखै‘र
न फळते नै
पण
बां री आस्था है
बळणैं में‘र गळणैं में !