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भींत / दीनदयाल शर्मा

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म्हे रैह्वां
अेक घर मांय
तीन घर बणाय'र ।

भींत....!

भींत क्यूं देखै
कांई दूजो

क्यूं कै
भींत बणा राखी है
म्हे आप - आपरै भीतर ।