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होठों को सच्चाई दे / कुमार अनिल
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:40, 30 नवम्बर 2010 का अवतरण
होठों को सच्चाई दे
बस इतनी अच्छाई दे
मेरा ही आसेब मुझे
घर में रोज़ दिखाई दे
ऐसी क्यों है ये दुनिया
यारब आज सफ़ाई दे
रिश्ते अगर बनाए हैं
रिश्तों को गहराई दे
ख़ुद से भी कुछ बात करूँ
इतनी तो तन्हाई दे
अगर कहीं है ईश्वर तू
मुझको कभी दिखाई दे