भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उन्याळो !/ कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:09, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण
समझ‘र
आभै रै मून रै
निमळाई
माथै पर चढ़ग्यो
अनीतो सूरज,
सुण‘र
सूनी रोही में
आपरी बोली रा पडूतर
किलंग किलखै
भोळा तीतर,
झिकोळै
लू रा खाथा लपका
मोरीयां री लाम्बी पूंछां,
कुतरै
तिरसाई गिलारयाँ
रूंखां री काची कूंपळ्यां,
रगड़ै
भख नै भरमाण तांईं
आपसरी में चूंचां
नीमड़ै पर बैठा
कुचमादी कागला,
उठै
भोम रै अन्तस नै
मथ मथ‘र
डीघा बघूळिया,
करै
ईंया पूरी
निरजण उजाड़ में
बैठ्यो उन्याळो
आप री जूण !