भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
…देखो / सांवर दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:11, 26 नवम्बर 2010 का अवतरण
सूरज नै पजावण रो ढंग देखो !
रात सूती नागी-तडंग देखो !
पैली तो ओलै-छानै लड़ता म्है,
अब सड़कां माथै हुवै जंग देखो !
डुसकां सागै आया आंसू बारै,
मन-दुख री बात चढगी चंग देखो !
घराळा छोड मुलक ढूकै आंगणै,
दिल कितो दरियाव कित्तो तंग देखो !
आंधी नित निंदरावै खेतड़ला,
पण ऊगै औ बीज दबंग देखो !