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अंधे / केदारनाथ अग्रवाल

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क्योंकि
आप
बार-बार गढ़े में गिरते हैं
समय के सूरज से
आँख मूँदे रहते हैं
रूपए को
माई बाप कहते हैं

रचनाकाल: १०-०२-१९७५