भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब न जाने की करो बात, करीब आ जाओ / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:06, 4 अगस्त 2009 का अवतरण
अब न जाने की करो बात, करीब आ जाओ
ख़त्म होगी न ये बरसात, करीब आ जाओ
सो न जाए कोई, चुप, करवटें बदलता हुआ
आख़िरी प्यार की है रात, करीब आ जाओ
पास रहकर भी रहें दूर उम्र भर के लिए!
यह भी अच्छी है मुलाक़ात, करीब आ जाओ
दो दिलों बीच ज़रूरत ही किसी की क्या है!
तुमसे कहनी है कोई बात, करीब आ जाओ
फिर न लौटेंगे कभी बाग़ की डालों पे गुलाब
फिर न पाओगे ये सौगात, करीब आ जाओ