भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनी अपनी ख़ूबियाँ और ख़ामियाँ भी बाँट लें / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:02, 21 नवम्बर 2010 का अवतरण
अपनी अपनी खूबियाँ और ख़ामियाँ भी बाँट लें
शोहरतें तो बाँट
ली रुसवाइयाँ भी बाँट
लें
बाँट ली आसानियाँ, दुशवारियाँ भी बाँट लें
आओ अपनी- अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी बाँट लें
बँट गया है घर का आगन, खेत सारे बँट गए
क्यों न अब बंजर ज़मीं और परतियाँ भी बाँट लें
कल अगर मिल बाँट के खाए थे तर लुक्मे तो आज
आओ हम अपनी ये सूखी रोटियाँ भी बाँट लें
अपने हिस्से की ज़मीं तो दे चुके हमसाए को
अब बताओ क्या हम अपनी वादियाँ भी बाँट लें
दर्द, आँसू, बेकरारी इक तरफ़ ही क्यूँ रहे
इश्क़ में हम अपनी अपनी पारियाँ भी बाँट लें