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ये लफ्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल/ कुँअर बेचैन

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ये लफ्ज़ आईने हैं मत इन्हें उछाल के चल अदब की राह मिली है तो देखभाल के चल

कहे जो तुझसे उसे सुन, अमल भी कर उस पर ग़ज़ल की बात है उसको न ऐसे टाल के चल

सभी के काम में आएंगे वक्त पड़ने पर तू अपने सारे तजुर्बे ग़ज़ल में ढाल के चल

मिली है ज़िन्दगी तुझको इसी ही मकसद से संभाल खुद को भी औरों को भी संभाल के चल

कि उसके दर पे बिना मांगे सब ही मिलता है चला है रब कि तरफ तो बिना सवाल के चल

अगर ये पांव में होते तो चल भी सकता था ये शूल दिल में चुभे हैं इन्हें निकाल के चल

तुझे भी चाह उजाले कि है, मुझे भी 'कुंअर' बुझे चिराग कहीं हों तो उनको बाल के चल