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तेज धूप में / कैलाश गौतम

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तेज धूप में
नंगे पांव
वह भी रेगिस्तान में,
मेरे जैसे जाने कितने
हैं इस हिन्दुस्तान में।

जोता-बोया-सींचा-पाला
बड़े जतन से देखा भाला
कटी फसल तो
साथ महाजन भी
उतरे खलिहान में।

जाने क्या-क्या टूटा-फूटा
हँसी न छूटी गीत न छूटा
सदा रहा
तिरसठ का नाता
बिरहा और मचान में।

जीना भी है मरना भी है
मुझको पार उतरना भी है
यही सोचता रहा
बराबर
बैठा कन्यादान में।