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बरसों बाद मिला है कोई / कैलाश गौतम

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बरसों बाद मिला है कोई
कहाँ छिपाऊँ मैं,
केवल उसे निहारूँ या
फिर-फिर बतियाऊँ मैं।

तनिक न बदला वही हू बहू
पहले जैसा है
बतियाने का लहजा भी
जैसा का तैसा है
सोच रहा
हँसते चहरे को
और हँसाऊँ मैं।

थोड़ी सी कुछ टूटन जैसी
मन में झलक रही
बरसी नहीं घटा कजरारी
क्यारी नहीं बही
असमंजस में
घिरा हुआ हूँ
क्या बतलाऊँ मैं।

बीते दिन भी इस मौके पर
ऐसे घेरे रहे,
फेर रहे हैं हाथ प्राण पर
मन से टेर रहे,
क्या-क्या फूँकूँ
एक सांस में
क्या-क्या गाऊँ मैं।