भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिड़िया / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:04, 29 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना }} {{KKCatKavita}} <poem> जितनी रंगीन च…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जितनी रंगीन चिड़ियाँ थीं मुझमें
सब उड़ गईं
जाने किन तरुओं गिरि-शिखरों से
जुड़ गईं
सूना नहीं हूँ मैं फिर भी ओ चितेरे,
राग बन कर के
सच मुझ में ही निचुड़ गईं |