Last modified on 28 अक्टूबर 2010, at 20:16

वह न जाएँगे अभी / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:16, 28 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह न जाएँगे
अभी
जाना है
जिन्हें
कभी
मौत के घर
मौत के पास
चुप
चुप
गुप
चुप।
मर मर मर।
ढले
फिर ढले
पहाड़ी की बर्फ
गले
फिर गले
पिघले
पिघले
पिघले
वह
न जाएँगे
अभी
जाना है
जिन्हें
कभी
मौत के घर
मौत के पास
चुप
चुप
गुप
चुप
मर
मर
मर

वह
न शाम है
न बर्फ
कि ढलें
फिर ढलें
गलें
फिर गलें
पिघलें।
उनकी मछली
समुद्र चीरती है
अभी
अभी
अभी
नीला गहरा
अथाह ठहरा
जिसे मौत नहीं चीरती
कभी कभी कभी।

रचनाकाल: १९-०२-१९६७