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स्वर का समारोह / केदारनाथ अग्रवाल
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पनवाड़ी ने कर दिए
सब के मुँह लाल
न ऊँचे
न नीचे
सब हो गए
एक दूसरे के ओंठ देखकर निहाल
गाने लगीं
रेडियो से तभी
लता मंगेशकर
आशा भोंसले
और रफी ने
चलती सड़क पर संगीत बिछा दिया
वायु में तैरता
गूँजने लगा स्वर का समारोह
रात खिल उठी
बिजली की पंखुरियों पर
जमीन पर नाचने लगे
स्वप्न और सौंदर्य
रचनाकाल: २७-०६-१९६८