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बेकार हूँ मैं / केदारनाथ अग्रवाल

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कल के पेट में पड़ा
कल का
अखबार हूँ मैं,
छप चुका मैं,
पढ़ चुके
लोग,
बेकार हूँ मैं

रचनाकाल: २३-०३-१९७०