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तुम्हीं आओ न / केदारनाथ अग्रवाल

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केन नदी से दूर-बहुत दूर
मैं बैठा हूँ-
खिन्न नतमुख, उदास;
न आएगी यहाँ मेरी नदी-
न कोई उसकी लहर।
तुम्हीं आओ न
मेरी नदी के-
उच्छल, अधीर, लहरों के
कल्लोल
कगार पर छाप मारती हुई
उच्छल, अधीर, लहरों के
हिल्लोल

रचनाकाल: २१-१०-१९७०