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खजुराहो में / केदारनाथ अग्रवाल

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जगह-ब-जगह
लॉन पर खड़े हैं
पेड़ बोगनबेलिया के
आदमकद,
खिले,
इकदम खिले,
जी-जान से खिले,
फूल-फूल हो गए खिले,
सफेद गुलाबी बुंदियों के

मैं देखता हूँ इन्हें
और कुछ नहीं देखता
जबकि लोग
कामातुर मूर्तियाँ देखते हैं
मंदिरों की,
नर और नारियों की
मिथुन-मुद्राएँ देखते हैं
छींट से छपे
नन्हे-मुन्हे फूल-
खुश, खुश,
बहुत खुश फूल,
स्वप्न और सौंदर्य के जाए फूल,
-धूप मारते सूरज में भी-
न मुरझाए फूल,
मन में समाए फूल,
बड़े अच्छे लगते हैं मुझे
बड़ी अच्छी लगती है दुनिया
भीतर
बाहर

रचनाकाल: २१-०३-१९७१