Last modified on 7 दिसम्बर 2010, at 21:11

गुहा में / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:11, 7 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गुहा में
गहरे खो गया है शरीर
खाली कुरता बाहर लटकता है
हुक्का पी रही है हवा
छोटे-बड़े बादल गुड़गुड़ाते हैं
केन के पानी के
बुलबुले बुदबुदाते हैं

हृदय में चलता है
हुकुम का एक्का
सड़क पर
साइकिल अब नहीं चलती

किलोल करती है कमंडल में
कुंडलिनी काया
कुंडलिनी नहीं जगती।

नागपंचमी नशे में बेहोश किए है

सिर पर खड़े पैर
काँच की चूड़ियों में फँसे हैं
रेत में गड़ी मुट्ठियाँ
योगाभ्यास करती हैं

रचनाकाल: ०९-०७-१९७१