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रश्मियाँ रँगती रहेंगी / केदारनाथ अग्रवाल

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रश्मियाँ रँगती रहेंगी
और थल रँगता रहेगा
भूमि की चित्रांगदा से
आदमी मिलता रहेगा
कोकिला गाती रहेगी
और जल बजता रहेगा
राग की वामांगिनी से
आदमी मिलता रहेगा
खेतियाँ हँसती रहेंगी
और फल पकता रहेगा
मोहिनी विश्वंभरा से
आदमी मिलता रहेगा
रूप से रचता रहेगा
गीत से गढ़ता रहेगा
आदमी संसार को
मुदमोद से मढ़ता रहेगा