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पाखी / अर्जुनदेव चारण
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सावचेत हौ चुग्गौ चुगजै
दांणां रै पेटै
मत लीजै पींजरौ
अडांणै मत राखजै
गाढ करार
आभै रौ छळ
पांखा कूंतजै
जीव-जूंण रौ अमर भरोसौ
सब नै दीजै
उडतौ रैइजै ।