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जन के पथ की / केदारनाथ अग्रवाल
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जन के पथ की
खबर खरी हो,
साँची हो,
बानी-बोली
प्राणवंत हो,
बाँकी हो,
मानववादी
सोच-समझ की साखी हो,
लोकतंत्र की
सत्यालोकित आँखी हो।
रचनाकाल: ०४-०४-१९९१