महीना अगस्त का / बरीस पास्तेरनाक
ठीक जैसे वचनबद्ध हो,
तड़के सुबह की किरण परदों के बीच से
एक तिरछी नारंगी रंग की लकीर
बनाती हुई पहुँच गई सोफ़े पर ।
तपती सूरज की रोलियाँ
पास के जंगलों में गाँव के घरों पर
मेरे बिछावन और गीले उपधान पर फैल गईं और फैल गईं
क़िताब की आलमारी के पीछे की दीवार पर ।
मुझे याद है, उपधान क्यों गीले थे ?
मैंने सपना देखा था
तुम बार-बार आ रही थीं
जंगलों से होकर, मुझे अलविदा कहने को ।
तितर-बितर भीड़ से होकर तुम आ रही थीं
तब किसी ने पुराना कैलेण्डर देख कर बताया था
आज का दिन अगस्त का छठा दिन था
ईसा मसीह के रूप-परिवर्तन का दिन ।
अक्सर आज के दिन
टैवोर की पहाड़ी से
एक शिखाहीन प्रकाश आता है
और शिशिर एक संकेत की तरह साफ़
लोगों की आँखें अपनी ओर खींच लेता है ।
तुम्चली आ रही थी
छोटे-छोटे भिखमंगे-से नंगे
काँपते लचकते श्वेत वल्कलवाले वृक्षों से होकर
क़ब्रिस्तान की लाल अदरखी
रंग वाली झाड़ियों के बीच
जो भासित थीं हनी-केक की तरह ।
उन चुप्पी साधे तरु-शिखरों पर
महान पड़ोसी था आकाश
और कौओं के दीर्घ-लम्बायित
काँव-काँव की प्रतिध्वनि में
दूरी पुकारती थी दूरत्व को ।
गिरजाघर के प्रांगण के बीच
अँग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह