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सपना / गोरख पाण्डेय


सूतन रहलीं सपन एक देखलीं

सपन मनभावन हो सखिया,

फूटलि किरनिया पुरुब असमनवा

उजर घर आँगन हो सखिया,

अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा

त खेत भइलें आपन हो सखिया,

गोसयाँ के लठिया मुरइआ अस तूरलीं

भगवलीं महाजन हो सखिया,

केहू नाहीं ऊँचा नीच केहू के न भय

नाहीं केहू बा भयावन हो सखिय,

मेहनति माटी चारों ओर चमकवली

ढहल इनरासन हो सखिया,

बैरी पैसवा के रजवा मेटवलीं

मिलल मोर साजन हो सखिया ।


(रचनाकाल : 1979)