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मुसाफ़िर / मख़दूम मोहिउद्दीन
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तेरे हमराही खो गए रे मुसाफ़िर-
मुसाफिर चले चल ।
न जाने वो क्या हो गए रे मुसाफ़िर-
मुसाफ़िर चले चल ।
तेरी मंज़िलें तेरी नज़रों से ओझल मुसाफ़िर ।
चले चल, चले चल, चले चल, चले चल ।
अँधेरे में अब साथ क्या देखता है
दिया बुझ गया है ।
बहरहल चल रात क्या देखता है
दिया बुझ गया है ।
तेरी मंज़िलें तेरी नज़रों से ओझल मुसाफ़िर ।
चले चल, चले चल, चले चल, चले चल ।
समझ मौत की वादियों से गुज़रता
सहर के तआकुब में
शब्दार्थ
<references/><ref></ref>