भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिजीविषा / विजय कुमार पंत

Kavita Kosh से
Abha.Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:27, 14 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> खूब कसरत कर रहा हूँ धूप…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खूब कसरत कर रहा हूँ
धूप में भी मर रहा हूँ
भूख जितनी भी विकल हो
पेट भर का पी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ......


सूत भर कर सूत धागे
उँगलियों में दर्द जागे
दो उनींदी आंख आगे
ज़िन्दगी यूँ सी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ...

खूब सपने उग रहे हैं
और बारिश बो रही है
आज जैसा भी रहे पर
कल की चिंता हो रही है
हूँ वही.. जो भी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ ...