देवदार वन (प्रथम पद)
नीला देवदार का वन है।
जिस पर मोहित हुआ पावन है।
छाया के अधरों पर झुक कर,
तरूवर करते मृदु-मृदु मर्मर,
हिमगिरि में निदाध फैला है,
सुखा रहीं हरिणियां बदन हैं,
नीला देवदार का वन है,
तोड़ हृदय की स्तब्ध अधिरता,
पर्वत चीर विमुक्त जल गिरता,
रूक दर्पण बन,
किसलय वन की परियों के लखता आनन है,
नीला देवदार का वन है।
आधे ढंके चमन से लोचन,
घुटनों पर तिरछा है आनन,
शिथिलित भौंहे, पिच्छल बांहें,
घन अलकों में बांधे बंधन है,
नीला देवदार का वन है।
कांप उठा हरिणी का यौवन,
हिलने लगा उठा बांहें वन,
पवन प्रपीड़ित लतिका- तन पर,
किसका यह करती चिन्तन है।
नीला देवदार का वन है।