भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगस्त 1955 / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:48, 9 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ |संग्रह=ज़िन्दाँनामा / फ़ैज़ अ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर में चाक-गरेबाँ हुए नापैद अबके
कोई करता ही नहीं ज़ब्त की ताकीद<ref>आदेश</ref> अबके

लुत्फ़ कर, ऐ निगहे-यार, कि ग़मवालों ने
हसरते-दिल की उठाई नहीं तमहीद<ref>भूमिका</ref> अबके

चाँद देखा तेरी आँखों में, न होठों पे शफ़क़
मिलती-जुलती है शबे-ग़म से तिरी दीद अबके

दिल दुखा है न वह पहला-सा, न जाँ तड़पी है
हम ही ग़ाफ़िल थे कि आई ही नहीं ईद अबके

फिर से बुझ जाएँगी शम‍एँ जो हवा तेज़ चली
लाके रक्खो सरे-महफ़िल कोई ख़ुरशीद<ref>सूरज</ref> अबके

कराची, 14 अगस्त 1955

शब्दार्थ
<references/>