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मेरे दर्द को जो ज़बाँ मिले / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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मेरा दर्द नग़्मा-ए-बेसदा
मेरी ज़ात ज़र्रा-ए-बेनिशाँ
मेरे दर्द को जो ज़ुबाँ मिले
मुझे अपना नाम-ओ-निशाँ मिले
मेरी ज़ात को जो निशाँ मिले
मुझे राज़-ए-नज़्म-ए-जहाँ मिले
जो मुझे ये राज़-ए-निहाँ मिले
मेरी ख़ामोशी को बयाँ मिले
मुझे क़ायनात की सरवरी
मुझे दौलत-ए-दो-जहाँ मिले