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श्रृगीऋषि धाम (होली फाग) / आर्त

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सरजू तट पावन पुण्य धाम आश्रम श्रृंगी ऋषि प्यारा
विदित संसारा ।।

पश्चिम बहै सरजू सरि भारी, भोरवै नहाएँ उठि पण्डित पुजारी
शीतल अगम जलधारा ।।

शंखनाद घंटा ध्वनि सुन्दर, होत आरती मन्दिर-मन्दिर ॥

गूँजत चहुदिसि धुनि राम-राम, सब सन्त करैं जयकारा
विदित संसारा ।।१।।

प्रेमदास जी कै मन्दिर पुराना, जहाँ जगदीश दास करैं ध्याना
अति आचरण उदारा ।।

बाजत ढ़ोल होत रामायण, कहत पुराण कथा मनभावन ॥

सत्संग करहिं मुनि सुबह शाम, विचरत करैं धर्म प्रचारा
विदित संसारा ।।२।।

कातिक चैत सावन मह मेला, घाट-घाट मचै ठेल-म ठेला
चहुँ दिसि भीड अपारा ।।

धर्म धुरीन विपुल नर नारी, करैं स्नान भीड बडी भारी॥

हरषहिं मन करि दर्शन प्रणाम, मेटत भव फंद करारा
विदित संसारा ।।३।।

भाग्यवंत 'ईशापुर' वासी, दरस पाइ प्रति पूरणमासी
निज परलोक सुधारा ।।

'आर्त' विनय सुनि द्रवहु खरारी, करउ कृपा हे जन दुखहारी ।।

बिसरै न कबहुँ भयहरन नाम, जो करै जग-जलनिधि पारा
विदित संसारा ।।४।।