भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भोपालःशोकगीत 1984 - इस शहर को छोड़कर / राजेश जोशी
Kavita Kosh से
Hemendrakumarrai (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 20:37, 16 जून 2007 का अवतरण (New page: '''इस शहर को छोड़कर'''<br><br> जो छोड़कर गए थे<br> सब लौट आये, सब लौट आयेंगे एक दिन।<br>...)
इस शहर को छोड़कर
जो छोड़कर गए थे
सब लौट आये, सब लौट आयेंगे एक दिन।
इस शहर को छोड़कर
अब कभी नहीं जा पायेंगे हम.
जिस मिट्टी के नीचे दबी हों
अपनों की हड्डियाँ
कोई छोड़कर जा भी कैसे सकता है
वह जगह !
इससे ज़्यादा कोई बिगाड़ भी क्या सकता है
किसी शहर का !
अब मृत्यु से कभी नहीं डर पायेंगे हम।
अब चाहकर भी कभी इस शहर से
नफ़रत नहीं कर पायेंगे हम।