Last modified on 13 जून 2010, at 19:09

गर्मी / दीनदयाल शर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:09, 13 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> तपता सूरज लू चलती है ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तपता सूरज लू चलती है
हम सब की काया जलती है।

गर्मी आग का है तंदूर
इससे कैसे रहेंगे दूर।

मन करता हम कुल्फ़ी खाएँ
कूलर के आगे सो जाएँ।

खेलने को हम हैं मज़बूर
खेलेंगे हम सभी ज़रूर।

पेड़ों की छाया में चलकर
झूला झूल के आएँगे।

फिर चाहे कितनी हो गर्मी
इससे ना घबराएँगे।।