Last modified on 22 नवम्बर 2010, at 15:42

रेत की पुकार / मंगत बादल

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:42, 22 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>आपने कभी सुनी है- रेत की पुकार प्यासी रेत की पानी जहां एक सलोना …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आपने कभी सुनी है-
रेत की पुकार
प्यासी रेत की
पानी जहां
एक सलोना सपना है
हारी- थकी आंखों का ।
एक -एक बूंद के लिए तरसती
पपड़ाए होंठों पर जीभ फिराती
रेत का पानी से कितना प्यार होता है
आप शायद नहीं जानते ।
आकाश को तकती आंखों में
मेह से कितना नेह होता है
यह खेजड़े और फोगले जानते हैं
या फिर जानता है रोहिड़ा
जो काली-पीली आंधी में भी
मुस्कुराता-मुस्कुराता गीत गा देता है
रेत की संवेदनशीलता के ।
रेत- सिर्फ रेत नहीं
यहां भी आप को
रंगीन कल्पनाएं मिलेगी ;
जिस दिन यह रेत
अंगड़ाई लेगी
इतिहास बदल जाएगा
आप देखते रहेंगे
यहां भी
नई-नई कलियां खिलेगी ।

अनुवाद : नीरज दइया