भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पूर्णिमा का चाँद / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
Eklavya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:05, 20 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह |संग्रह=कुछ कविताएँ / शमशेर बह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चांद निकला बादलों से पूर्णिमा का।
गल रहा है आसमान।
एक दरिया उबलकर पीले गुलाबों का
चूमता है बादलों के झिलमिलाते
स्वप्न जैसे पाँव।