भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बारिश : चार प्रेम कविताएँ-2 / स्वप्निल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:54, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ख़ूब बारिश होगी

फिर आएगी बाढ़

दर-बदर हो जाएंगे माल-मवेशी

घर की दीवारों में

पहुँच जाएगा पानी

क्या तुम्हें अच्छा लगेगा प्रिय


तुम जिस वर्ग की हो

वहाँ लगातार बारिश से

कोई फ़र्क नहीं पड़ता

लेकिन जिस दुनिया में हम

रहते हैं वहाँ

ज़्यादा बारिश का मतलब

अच्छी फसलों से हाथ

धो बैठना

मिट्टी के मकानों का लद्द-लद्द गिरना


तुमने गाँव नहीं देखे हैं

जिया नहीं है वहाँ का

कठिन जीवन

तुम क्या जानो

यह पानी का आवेग

हमारे जीवन से क्या-क्या

बहा ले जाता है