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शरद का आकाश / तुलसी रमण

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समेट ली गई हैं फ़सलें
धूसर खेतो मे
बीजे हैं गेहूँ के बीज

फिर-फिर जन्म लेगी
अपने अंकुरण में पृथ्वी

बाग़ीचों में
झड़ रहे पीले-पत्ते
पाले में जम रही
वीरान देह धरती की

निख़रा है
शरद की सुबह का आकाश

नगाड़े की धुन
शहनाई की तान
सजे रथ देवता
आदमी के घर
जा रहे मेहमान

पर्व के दिन
देव-स्थानों में
       फहराया गया
नया रक्त ध्वज

आस्था के आँगन में
श्रम का संधान

मनाली 7 नवम्बर 1990