भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चांद हमारी ओर बढ़ता रहे / सुन्दरचन्द ठाकुर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:32, 30 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुन्दरचन्द ठाकुर |संग्रह=एक बेरोज़गार की कविताएँ / सु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चांद हमारी ओर बढ़ता रहे

अंधेरा भर ले आग़ोश में


तुम्हारी आंखों में तारों की टिमटिमाहट के सिवाय

सारी दुनिया फ़रेब है


नींद में बने रहें पेड़ों में दुबके पक्षी

मैं किसी की ज़िन्दगी में ख़लल नहीं डालना चाहता

यह पहाड़ों की रात है

रात जो मुझसे कोई सवाल नहीं करती

इसे बेख़ुदी की रात बनने दो

सुबह

एक और नाकाम दिन लेकर आयेगी.