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चाँदनी में साथ छाया / हरिवंशराय बच्चन
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चाँदनी में साथ छाया!
मौन में डूबी निशा है,
मौन-डूबी हर दिशा है,
रात भर में एक ही पत्ता किसी तरु ने गिराया!
चाँदनी में साथ छाया!
एक बार विहंग बोला,
एक बार समीर ड़ोला,
एक बार किसी पखेरू ने परों को फड़फड़ाया!
चाँदनी में साथ छाया!
होठ इसने भी हिलाए,
हाथ इसने भी उठाए,
आज मेरी ही व्यथा के गीत ने सुख संग पाया!
चाँदनी में साथ छाया!