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पत्तों की मृत्यु / मंगलेश डबराल
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कितने सारे पत्ते उड़कर आते हैं
चेहरे पर मेरे बचपन के पेड़ों से
एक झील अपनी लहरें
मुझ तक भेजती है
लहर की तरह काँपती है रात
और उस पर मैं चलता हूँ
चेहरे पर पत्तों की मृत्यु लिए हुए
चिड़िया अपने हिस्से की आवाज़ें
कर चुकी हैं, लोग जा चुके हैं
रोशनियाँ राख हो चुकी हैं
सड़क के दोनों ओर
घरों के दरवाज़े बन्द हैं
मैं आवाज़ देता हूँ
और वही लौट आती है मेरे पास ।
(रचनाकाल :1979)