मृत्यु का आगमन / श्रीनिवास श्रीकांत
मकड़ी ने बुन लिय्आ है अपना जाल
तार-तार सरकती है
धूप और रेशम की
आख़री चमक
लुढ़कता है
एक क्षण बौराया
जन्म के बेढ़ब ज़ीने पर
आँख पीती है अँधेरा
और हथेलियों में
ज़ज़्ब होता है वक्त
मौत का आना
है रेशम का पोशीदा निलस्म
भोग
अनुभव
और भुलावे की
ठूंठ सांत्वना के बाद
स्वप्न और खिलौने
और धूप का एक साथ टूटना
तर्क का
कई काणों से झाँकना बेमतलब
असमय हाथ में थामे बाज़
एक ख़तरनाक जादूग़र का
मंच पर आना
मौत खींचती है अपनी तरफ़
बिन धात्रों के
डालती नकेल
एक ख़तरनाक झण में
ख़तरनाक ढंग से
बजता है गजर
बनजारा आँगन में
बिछाता बिसात
थमा एक नायाब खिलौना
कर लेता
घर को मार्ट्गेज़
मक्कार बूढ़ा जब
झाँक़ता है गवाक्ष से
फेंकता दाने
मन्तरा हुआ पानी
करता हुआ बिसाती को इशारे
बाँझ मुर्गियों की चिल्लाहट से
भर गया है घर
जिस्म
चौखट
और चौखट चौखट
अँधेरा फाँदते हुए
सन्नाटे के आलम में
दरारों से झांकती है
बेतरतीब आँखें
घायल पंछी की फड़फड़ाहट के साथ
पलक झपकते
होता है कन्धे प्अर
प्रेत का उछलना
वक़्त
शटल
व नब्ज़ का थम जाना
बुर्जियों बुर्जियों
उतरती हैं मौत
आने वाले सन्नाटे के साथ
लक़दक़
रस्सा फैंक कर
खींचती कमन्द