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मौत / अरुण कमल
Kavita Kosh से
ख़ूब साफ़ थी लौ कि अचानक
झुक गई बत्ती
किसी को मालूम नहीं था
धीरे-धीरे गल रहा था मोम
धीरे-धीरे जल रहा था सूत
मैं क्या कहूंगा जाकर बच्चे की माँ से
कैसे मैं सामने खड़ा हो पाऊंगा
दौड़ती चली जा रही थी गेंद ख़ूब तेज़
एक छोर से दूसरे छोर मैदान में कि अचानक
झाड़ी में छुप गई
जिसका बेटा मर गया हो
उससे कोई क्या कहेगा जाकर
मैं तो यह नहीं कह सकता-- ईश्वर की इच्छा है सब
उसी ने दिया था
उसी ने ले लिया
फिर भी मैं क्या कहूंगा जाकर?