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जीने का हुनर / मोहम्मद इरशाद
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या रब मुझको ऐसा जीने का हुनर दे
जो मुझसे मिले इंसाँ उसे मेरा कर दे
नफरत बसी हुई है जिन लोगों के दिल में
परवर दिगार उनको मुहब्बत से भर दे
मैं ख़ुद के ऐब देखूँ ओ लोगों की खूबियाँ
अल्लाह जो दे तो मुझे ऐसी नज़र दे
बेखौफ जी रहा हूँ गुनहगार हो गया
दुनिया का नहीं दिल को मेरे अपना ही डर दे
जो लोग भटकते हैं दुनिया में दरबदर
मोती का ना सही उन्हें तिनकों का तो घर दे
हर हाल में करते हैं जो शुक्र अदा तेरा
‘इरशाद’ को भी मौला उनमें शुमार कर दे