भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात-भर प्रभु को नींद न आयी / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:31, 2 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=सीता-वनवास / गुलाब खंडेल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


रात-भर प्रभु को नींद न आयी
फिर-फिर सीता की मोहक छवि नयनों में लहरायी
 
कभी नव वधू माला लेकर
कभी ग्रामपथ पर गति-मंथर
चित्रकूट में फटिक शिला पर
देखी कभी लजायी
 
'उसने कंचन-मृग भी माँगा
क्यों मैं धनुष-बाण ले भागा!
क्या था उसका दोष कि त्यागा!'
सोच विकलता छायी
 
'क्या यदि राज्य भारत को देता!
साथ प्रिया के मैं हो लेता
लंका से तो फिरा विजेता
हार अवध में खायी'

रात-भर प्रभु को नींद न आयी
फिर-फिर सीता की मोहक छवि नयनों में लहरायी