भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी / मीराबाई

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:55, 22 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} <poem> कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी। तोरि बन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी। तोरि बनसरी लागी मोकों प्यारीं॥ध्रु०॥
दहीं दुध बेचने जाती जमुना। कानानें घागरी फोरी॥ काना०॥१॥
सिरपर घट घटपर झारी। उसकूं उतार मुरारी॥ काना०॥२॥
सास बुरीरे ननंद हटेली। देवर देवे मोको गारी॥ काना०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी॥ काना०॥४॥