Last modified on 13 नवम्बर 2009, at 21:05

सो मनमोहन होत लटु / मतिराम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:05, 13 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मतिराम }} <poem> सो मनमोहन होत लटू, मुख जाके भटू बिधु …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सो मनमोहन होत लटू, मुख जाके भटू बिधु की छबि छाजै।
खेलि कै नैननि देखै जो नेक, तो स्याम सरोज पराजय साजै।।
जो बिहँसै मुख सुन्दर तो, 'मतिराम' बिहान को बारिज लाजै।
बोलै अली मृदुमंजुल बोल तौ, कोकिल बोलनि को मद भाजै।।


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री सुरेश सलिल के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।