भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रतीक्षा (दो) / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
Lina niaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:52, 24 जून 2007 का अवतरण (New page: अभी महीना गुज़रा है आधा शेष और हैं पंद्रह दिन समय यह सरके कच्छप-गति से ...)
अभी महीना गुज़रा है आधा
शेष और हैं पंद्रह दिन
समय यह सरके कच्छप-गति से
नंदिनी तेरे बिन
जीवन खाली है, मन खाली
स्मृति की जकड़न
नीली पड़ गई देह विरह से
घेर रही ठिठुरन
मर जाएगा कवि यह तेरा
बिखर जाएगा फूल
अरी, नंदिनी, जब आएगी तू
बस, शेष बचेगी धूल