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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 16

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पद 151 से 160 तक

(151)

जेा पै चेराई रामकी करतो न लाजातो।

तौ तू दाम कुदाम ज्यों कर-कर न बिकातो।

जपत जीह रघुनाथको नाम नहिं अलसातो।

बाजीगर के सूम ज्यों खल खेह न खातेा।

जौ तू मन! मेरे कहे राम-नाम कमातो ।

सीतापति सनमुख सुखी सब ठाँव समातो।

राम सोहाते तोहिं जौ तू सबहिं सोहातो।

काल करम कुल कारनी कोऊ न कोहातो।।

रामनाम अनुरागही जिय जो रतिआतो।

स्वारथ-परमारथ-पथी तोहिं सब पतिआतो।

सेइ साधु सुनि समुझि कै पर-पीर पिरातो ।

जनम कोटिको काँदलो हृद-हृदय थिरातो।

भव-मग अगम अनंत है, बिनु श्रमहि सिरातो।

महिमा उलटे नामकी मुनि कियो किरातो।

अमर -अगम तनु पाइ सो जड़ जाय न जातो।

होतो मंगल -मूल तू, अनुकूल बिधातो।

जो मन प्रीति-प्रतीतिसों राम-नामहिं रातो।

तुलसिदास रामप्रसादसों तिहुँताप नसातो।