भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खंडित सपन / शैलेश मटियानी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:36, 24 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेश मटियानी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> खंडित हुआ ख़ु…)
खंडित हुआ
ख़ुद ही सपन,
तो नयन आधार क्या दें
नक्षत्र टूटा स्वयं,
तो फ़िर गगन आधार क्या दें
जब स्वयं माता तुम्हारी ही
डस गई ज्यों सर्प-सी
तब कौन
तपते भाल पर
चंदन–तिलक-सा प्यार दो !