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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 20

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पद 191 से 200 तक

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जे अनुराग न राम सनेही सों।

तौ लह्यों लाहु कहा नर-देही सो।

जो तनु धरि, परिहरि सब सुख, भये सुमति राम-अनुरागी।

सो तनु पाइ अघाइ किये अघ, अवगुन-उदधि अभागी।।

ग्यान, बिराग, जोग, जप, तप, मख, जग मुद-मग नहिं थोरे।

राम-प्रेमबिनु नेम जाय जैसे मृग -जल-जलधि-हिलोरे।।

लोक-बिलोकि, पुरान-बेद सुनि, समुझि-बूझि गुरू ग्यानी

प्रीति-प्रतीति राम-पद -पंकज सकल-सुमंगल-खानी।।

अजहुँ जानि जिय, मानि हारि हिय, होइ पलक महँ नीको।

सुमिरू सनेहसहित हित रामहिं, मानु मतो तुलसीको।।